"मैं" का वजूद
तुझे लिख दूँ,
तु कलम तो नहीं।
मैं वही गीत पुराना हूँ,
बस जज्बातों के शब्दों से पिरोया हूँ,
पत्थर दिल बन गया हूँ मैं....
अब तुम पुछोगें क्यूँ..?
तो बता दूँ तुम्हें...
बहुत कुछ खोया हूँ मैं
अकेला तन्हा रातों में बहुत रोया हूँ मैं।।
अपने आसूँओं को आसूँओ से धोया हूँ मैं।
रोताें को बहुत कम सोया हूँ मैं...||
To be continue........
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