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"मैं" का वजूद

तुझे लिख दूँ,  तु कलम तो नहीं।  मैं वही गीत पुराना हूँ,  बस जज्बातों के शब्दों से पिरोया हूँ,   पत्थर दिल बन गया हूँ मैं.... अब तुम पुछोगें क्यूँ..?  तो बता दूँ तुम्हें...   बहुत कुछ खोया हूँ मैं  अकेला तन्हा रातों में बहुत रोया हूँ मैं।।  अपने आसूँओं को आसूँओ से धोया हूँ मैं।  रोताें को बहुत कम सोया हूँ मैं...|| To be continue........

दरियादिली

वो लिपटी थी गेरों कि भाहों से,  और हम विश्वास कियें बैठे थे।2॥ वो झूठ बोला करते थे अक्सर,  और हम दरियादिली लियें बैठें थे।।  वक्त गुजरता गया लोग पराये होते गये।2।। कुछ साथ रहे कुछ साथ छोड़ते गये।  हमारे पास थी दरियादिली,  हम दिल देते गये।  लोग दिल तोड़ते गये।  लोग दिल तोड़ते गये।।  To be continue.....