तुम दुनिया बन गई थी


तुम दुनिया बन गई थी मेरी, 
 पर क्या हुआ जो ना बन पाई मेरी, 
मैं टुटा, बिखरा 
       और 
आखिर में निखरा, 
     शायद ये तेरा ही खुमार था, 
जो इक पल चढ़ता
     और
 अगले ही पल उतर जाता।

 तुम दुनिया बन गई थी मेरी,
 पर क्या हुआ जो ना बन पाई मेरी, 
 मैं सम्भला,समझा 
    और 
फिर खुद को भुला, 
 एकाएक मेरी ज़िन्दगी बदल गई, 
जब तुम दुर चली गई,
 माना तेरे पैरो में जाति की बेड़ियां थी,
पर लाचार नहीं थी,
 मुझमें हिम्मत थी
 पर 
तेरी हिम्मत देखते ही वो हार गई।
    हाँ तेरे पीछे हटने से हार हो गई मेरी। 
तुम दुनिया बन गई थी मेरी 
पर क्या हुआ जो ना बन पाई मेरी।। 
वजुद


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